Section 13 of Hindu Marriage Act: तलाक का आधार

Section 13 of Hindu Marriage Act | Divorce

साल 1955 से पहले तक भारत में हिंदुओं के लिए तलाक को लेकर कोई भी कानून नहीं था, फिर हिंदू विवाह अधिनियम 1955 लाया गया और उसमें तलाक के कई आधारों को स्पष्ट किया गया। इस लेख में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 की उपधारा 1 और 1-A के बारे में विस्तार से बताया गया है।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) में तलाक के 8 आधार बताए गए हैं, इन आधारों का इस्तेमाल पति और पत्नी दोनों कर सकते हैं, इन्हें आप नीचे पढ़ सकते हैं—

Section 13(1)(i) of Hindu Marriage Act

व्यभिचार (Adultery): विवाह के बाद पति या पत्नी में से किसी ने यदि अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से संभोग कर लिया है, तो अर्जीदार द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

नोट 1: यदि पति या पत्नी ने शादी के बाद किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से एक बार ही संभोग किया है तो भी यह तलाक का आधार बन सकता है।

नोट 2: तलाक का यह आधार शादी के बाद ही पति या पत्नी द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से किए गए संभोग की स्थिति में लागू होगा, अर्थात शादी से पहले के शारीरिक संबंधों को तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता।

नोट 3: इस आधार पर तलाक तभी संभव होगा, जब शारीरिक संभोग स्वेच्छा से किया गया हो, दूसरे पक्षकार के साथ जबरदस्ती से या नशीले पदार्थ का सेवन कराकर शारीरिक संभोग किए जाने पर तलाक नही लिया जा सकेगा।

ध्यान दें: इस उपधारा के सम्बन्ध में एक ध्यान देने वाली बात यह भी है कि विवाह के पश्चात पति या पत्नी में से किसी ने अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से संभोग कर लिया है तो यह एक आपराधिक गतिविधि नहीं मानी जाएगी, सिर्फ इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

Section 13(1)(ia) of Hindu Marriage Act

क्रूरता (Cruelty): विवाह के बाद अर्जीदार के साथ ऐसा अनुचित आचरण किया गया हो, जिससे उसे काफी दर्द और तकलीफ पहुंची हो और दूसरे पक्षकार के साथ रहना असंभव हो गया हो, तो इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

नोट 1: शारीरिक क्रूरता के साथ-साथ मानसिक क्रूरता के मामले में भी तलाक लिया जा सकता है।

नोट 2: अगर पति दहेज की मांग करता है, तो यह भी क्रूरता में शामिल होगा और इस आधार पर भी तलाक लिया जा सकता है। (ये सर्वोच्च न्यायालय ने शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी केस में कहा)

नोट 3: अगर कोई पत्नी अपने पति को उसके बूढ़े मां-बाप को छोड़ने के लिए मजबूर करती है, तो यह भी क्रूरता का आधार ही माना जाएगा और इस आधार पर पति द्वारा तलाक लिया जा सकता है।

क्रूरता को किसी भी एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया था, इसे सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रसल बनाम रसल केस में परिभाषित किया गया। सर्वोच्च न्यायालय की परिभाषा के अनुसार “क्रूरता ऐसे चरित्र का आचरण है जिससे जीवन, अंग या शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा होता है या ऐसे आचरण की उचित आशंका उत्पन्न होती है।”

Section 13(1)(ib) of Hindu Marriage Act

अभित्यक्त (Desertion): याचिका प्रस्तुत करने से ठीक पहले कम से कम 2 वर्ष की निरंतर अवधि के लिए याचिकाकर्ता को बिना सहमति से छोड़ दिया है, तो इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

नोट: छोड़ देने के संबंध में कुछ ध्यान देने योग्य बातें—

दूसरे पक्षकार द्वारा बिना सहमति के छोड़ कर चले जाने की स्थिति में तलाक के लिए यह आधार मान्य होगा।

  • यदि दूसरे पक्षकार ने साथ रहते हुए दांपत्य अधिकारों/वैवाहिक अधिकारों का निर्वहन नहीं किया है, तो तलाक के लिए यह आधार मान्य होगा।
  • दूसरे पक्षकार द्वारा दूर रहते हुए भी दांपत्य अधिकारों/वैवाहिक अधिकारों को भलीभांति निभाया गया हो, तो तलाक के लिए यह आधार मान्य नहीं होगा।
  • दूसरे पक्षकार द्वारा किसी उचित कारण की वजह से छोड़कर चले जाने पर अर्जिदार को इस आधार पर तलाक नहीं मिलेगा। उदाहरण: यदि कोई पुरुष अपनी पहली पत्नी के रहते घर में दूसरी गैरकानूनी पत्नी ले आता है और इस बात पर उसकी पहली पत्नी उसे छोड़कर चली जाती है, तो वह पुरुष उस पहली पत्नी से इस आधार पर तलाक नहीं ले पाएगा।

Section 13(1)(ii) of Hindu Marriage Act

धर्मांतरण (Conversion): यदि दूसरे पक्षकार ने हिंदू से परिवर्तित होकर दूसरा धर्म ग्रहण कर लिया हो, तो अर्जीदार द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

नोट 1: तलाक के लिए आवेदन करने का अधिकार केवल पति या पत्नी के लिए उपलब्ध होगा।

नोट 2: धर्मांतरण को सीधे तलाक नहीं माना जाएगा, इसके लिए गैर धर्मांतरित पति या पत्नी द्वारा न्यायालय में तलाक की अर्जी देनी होगी, इसके बाद न्यायालय के आदेश पर ही तलाक माना जाएगा।

Section 13(1)(iii) of Hindu Marriage Act

विकृत चित्त (Unsoundness of mind): यदि दूसरा पक्षकार किसी मानसिक लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो गया है और अर्जीदार का उसके साथ रहना असंभव हो गया हो, तो इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

Section 13(1)(iv) of Hindu Marriage Act

असाध्य कुष्ठ रोग (Leprosy): इस आधार को ‘पर्सनल लॉ (संशोधन) अधिनियम 2019’ द्वारा हटा दिया गया है।

Section 13(1)(v) of Hindu Marriage Act

यौन रोग (Venereal disease): यदि दूसरे पक्षकार को संक्रामक यौन रोग हो गया है, तो इस आधार पर अर्जीदार द्वारा तलाक लिया जा सकता है।

Hindu Marriage Act Section 13(1)(vi)

परित्याग (Renunciation): यदि दूसरा पक्षकार किसी धार्मिक आश्रम में प्रवेश करके संसार का परित्याग कर चुका है, तो अर्जीदार द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

Hindu Marriage Act Section 13(1)(vii)

अनुमानित मृत्यु (Presumed death): यदि दूसरे पक्षकार के बारे में 7 वर्ष या अधिक कालावधि में उसके जानकारों द्वारा यह नहीं सुना गया है कि वह जीवित है, तो इस आधार पर अर्जिदार द्वारा तलाक लिया जा सकता है।

Section 13(1A) of Hindu Marriage Act

धारा 13(1A) में तलाक के 2 आधार बताए गए हैं, इन आधारों का इस्तेमाल पति और पत्नी दोनों कर सकते हैं, जिन्हें आप नीचे पढ़ सकते हैं—

Section 13(1A)(i) of Hindu Marriage Act

सहवास का पुनरारम्भ नहीं (No resumption of cohabitation): इसमें न्यायालय दोनों पक्षकारों के लिए न्यायिक पृथक्करण की डिक्री/आदेश पारित करता है, यदि न्यायिक पृथक्करण की डिक्री/आदेश पारित होने के 1 वर्ष या उससे अधिक समय तक भी दोनों पक्षकार साथ रहने को राजी नहीं होते हैं, तो इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

नोट 1: इसमें पति-पत्नी का रिश्ता बना रहता है।

नोट 2: न्यायिक पृथक्करण की डिक्री/आदेश को समय से पूर्व भी रद्द किया अथवा कराया जा सकता है।

नोट 3: न्यायिक पृथक्करण को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 10 में दिया गया है। न्यायिक पृथक्करण के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करें- Judicial Separation(Section 10 of Hindu Marriage Act)

Section 13(1A)(ii) of Hindu Marriage Act

इसमें न्यायालय दूसरे पक्षकार के लिए दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की डिक्री/न्यायिक आदेश पारित करता है और डिक्री पारित होने के समय से 1 वर्ष या उससे अधिक समय बाद भी दूसरे पक्षकार द्वारा इसका पालन नहीं किया गया है, तो अर्जीदार द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन/पुनरारंभ (Restitution of conjugal rights): इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 में बताया गया है। जब पति या पत्नी में से कोई एक बिना उचित वजह के दूसरे को छोड़कर दूर चला जाए तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा।

इसके बाद न्यायालय याचिका में दिए गए कथनों की सत्यता की जांच पड़ताल करने के बाद दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की डिक्री आदेश पारित कर सकेगा। इस डिक्री के माध्यम से दूसरे पक्षकार से कहा जाता है, कि वह लौटकर अपने वैवाहिक दायित्वों को संभाले।

नोट: छोड़ देने के संबंध में कुछ ध्यान देने योग्य बातें—

  • यदि दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार को शारीरिक तौर पर छोड़कर घर से चला गया हो, तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा।
  • यदि दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार के साथ घर पर तो रहता है, लेकिन उसने वैवाहिक दायित्वों को निभाना बंद कर दिया हो, तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा। (केस: रवि कुमार बनाम जुल्मी देवी 2010 उच्चतम न्यायालय)

वैवाहिक दायित्व (Marital obligations): वैवाहिक दायित्वों में मुख्यतः दो बातों को सम्मिलित किया जाता है—

1. एक मुख्य कर्तव्य सहवास यानी संभोग से संबंधित है।

2. दूसरा मुख्य कर्तव्य एक दूसरे का साथ निभाने से संबंधित है।

यदि दूसरे पक्षकार द्वारा दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित होने के बाद उसका पालन नहीं किया जाता है, तो CPC के ऑर्डर 21 रूल 32 के तहत उसकी संपत्ति की कुर्की की जा सकती है।

यदि दूसरा पक्षकार डिक्री पारित होने के समय से 1 वर्ष या उससे अधिक समय बाद भी उसका पालन नहीं करता है, तो पीड़ित पक्षकार के द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- ये धारा सिर्फ पत्नियों के लिए हैं {Section 13(2) of Hindu Marriage Act}

Section 13 of Hindu Marriage Act

FAQs From Section 13 Hindu Marriage Act

  1. किन परिस्थितियों में न्यायालय दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन/पुनरारंभ की डिक्री पारित नहीं करेगा?

    यदि दूसरा पक्षकार न्यायालय में यह साबित कर दे कि वह किसी उचित कारण यानी पहले पक्षकार के किसी दोष की वजह से उसे छोड़ कर गया था तो न्यायालय यह डिक्री पारित नहीं करेगा।

  2. क्या हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है?

    साल 1984 के सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार केस में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन नहीं करती है।

  3. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 में क्या है?

    हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में तलाक के अधिकतर आधारों को स्पष्ट किया गया है। जैसे:
    — धारा 13(1) में तलाक के 8 आधार दिए गए हैं, जो की पति और पत्नी दोनों के लिए हैं।
    — धारा 13(1-A ) तलाक के 2 आधार दिए गए हैं, जो की पति और पत्नी दोनों के लिए हैं।
    — धारा 13(2) में तलाक के 4 आधार दिए गए हैं, जो सिर्फ पत्नी के लिए हैं।
    — धारा 13-B में आपसी सहमति से तलाक की बात की गई हैं।

  4. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) क्या है?

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) में क्रूरता को परिभाषित किया गया है। जिसमें पति या पत्नी द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

Difficult Words of Section 13 of Hindu Marriage Act

शब्दसरल अर्थ
अर्जीदार/याचिकाकर्तान्यायालय में आदेश प्राप्त करने के लिए याचिका दायर करने वाला व्यक्ति
स्वेच्छा सेखुद की इच्छा से/जानबूझकर
गैर धर्मांतरितजिसने धर्म परिवर्तन ना किया हो
संक्रामक यौन रोगऐसा यौन रोग जो सम्भोग करने से फैलता हो
पहला पक्षकार याचिकर्ता
दूसरा पक्षकारप्रतिवादी
CPC Civil Procedure Code

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Reference Link: India Code (The Hindu Marriage Act, 1955)

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