Section 9 of Hindu Marriage Act: दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन

Section 9 of Hindu Marriage Act | Restitution of Conjugal Rights

जब पति या पत्नी में से कोई एक बिना उचित वजह के दूसरे को छोड़कर दूर चला जाए, तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा।

इसके बाद न्यायालय याचिका में दिए गए कथनों की सत्यता की जांच पड़ताल करने के बाद दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की डिक्री/आदेश पारित कर सकेगा। इस डिक्री के माध्यम से दूसरे पक्षकार से कहा जाता है कि वह लौटकर अपने वैवाहिक दायित्वों को संभाले।

स्पष्टीकरण: जहां यह प्रश्न उठता है कि क्या समाज से चले जाने के लिए कोई उचित बहाना था, तो उचित बहन साबित करने का भार उसी व्यक्ति पर होगा जो समाज से हटकर दूर चला गया है।

बचाव: दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के मामले में विरोधी पक्षकार को निम्नलिखित बचाव प्राप्त हो सकते हैं—

  1. कि प्रत्यर्थी प्रार्थी को छोड़कर कहीं नहीं गया है/गयी है।
  2. कि प्रत्यर्थी के छोड़कर चले जाने की उचित वजह थी।
  3. कि प्रार्थी और प्रत्यर्थी के बीच कोई वैध विवाह हुआ ही नहीं था।
  4. कि प्रार्थी अपनी गलती या अयोग्यता का लाभ उठाना चाह रहा है/रही है।
  5. कि याचिका दायर करने में अनावश्यक या अनुचित देरी हुई है।
  6. कि याचिका प्रत्यर्थी के साथ साँठ-गाँठ करके पेश की गई है।

केस: श्रीमती सान्तना बनर्जी बनाम सुसांत कुमार बनर्जी कोलकाता हाई कोर्ट 2012—

इस बात में सान्तना ने अपने पति सुसांत को छोड़ दिया था। सुसांत उसकी शर्तों के अनुसार अपनी पत्नी को लाने के लिए तैयार था परंतु सान्तना ने अपने पति के घर वापस लौटने से इनकार कर दिया। इसलिए इस मामले में न्यायालय द्वारा दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित की गई।

नोट 1: छोड़ देने के संबंध में कुछ ध्यान देने योग्य बातें—

  1. यदि दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार को शारीरिक तौर पर छोड़कर घर से चला गया हो तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा।
  2. यदि दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार के साथ घर पर तो रहता है, लेकिन उसने वैवाहिक दायित्वों को निभाना बंद कर दिया हो तो पहला पक्षकार जिला न्यायालय में दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की याचिका दर्ज कर सकेगा। (केस: रवि कुमार बनाम जुल्मी देवी 2010 उच्चतम न्यायालय)

वैवाहिक दायित्व (Marital obligations): वैवाहिक दायित्वों में मुख्यतः दो बातों को सम्मिलित किया जाता है—

  1. एक मुख्य कर्तव्य सहवास यानी संभोग से संबंधित है।
  2. दूसरा मुख्य कर्तव्य एक दूसरे का साथ निभाने से संबंधित है।

नोट 2: यदि दूसरे पक्षकार द्वारा दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित होने के बाद उसका पालन नहीं किया जाता है, तो CPC (Code of Civil Procedure) के ऑर्डर 21 रूल 32 के तहत उसकी संपत्ति की कुर्की की जा सकती है।

नोट 3: यदि दूसरा पक्षकार डिक्री पारित होने के समय से एक वर्ष या उससे अधिक समय बाद भी उसका पालन नहीं करता है, तो पीड़ित पक्षकार के द्वारा इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- न्यायिक पृथक्करण (Section 10 of Hindu Marriage Act)

Section 9 of HMA

Section 9 of The Hindu Marriage Act, 1955

FAQs From Section 9 of HMA

  1. Which section of the Hindu Marriage Act deals with the restitution of conjugal rights?

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन/पुनरारंभ से संबंधित है।

  2. What does the restitution of conjugal rights mean?

    जब पति-पत्नी में से कोई एक दूसरे को बिना किसी वैध कारण के छोड़ देता है, तो पहला पक्ष जिला न्यायालय में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर कर सकेगा।

    इसके बाद कोर्ट याचिका में दिए गए बयानों की सत्यता की जांच कर दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री आदेश पारित कर सकेगी। इस डिक्री के जरिए दूसरे पक्ष को वापस लौटने और अपनी वैवाहिक जिम्मेदारियां उठाने के लिए कहा जाता है।

  3. What is Section 9 of Hindu Marriage Act?

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 में दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन/पुनरारंभ के बारे में बताया गया है।

Difficult Words of Section 9 of HMA

शब्दसरल अर्थ
दाम्पत्य अधिकारसमाज में विवाहित जोड़ों को मिलने वाले अधिकार और विशेषाधिकार
प्रत्यर्थी न्यायालय में किसी व्यक्ति के द्वारा याचिका दायर करने पर जवाब देने वाला व्यक्ति। उदाहरण: जिस व्यक्ति पर केस दर्ज होता है वह प्रत्यर्थी होता है।
प्रार्थी न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति
याचिकाकर्ता न्यायालय में आदेश प्राप्त करने के लिए याचिका दायर करने वाला व्यक्ति

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Reference Link: India Code (The Hindu Marriage Act, 1955)

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