Section 101 BNS: हत्या की धारा

Section 101 BNS | BNS 101

इसमें बताया गया है कि नीचे दिए गए आपराधिक वध के मामलों के अलावा अपवादों को छोड़कर मानव वध को हत्या कहा जाएगा।

(a) यदि वह कार्य जिसके कारण मृत्यु हुई है, मृत्यु कारित करने के इरादे से किया गया है, या

(b) यदि वह कार्य ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाने की इरादे से किया जाता है, जिसके बारे में अपराधी जानता है कि इससे उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है, या

(c) यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुंचाने के इरादे से किया गया है, और उसे पहुंचाई जाने वाली शारीरिक क्षति प्राकृतिक रूप से सामान्य तौर पर मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है, या

(d) यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता है कि वह कार्य इतना खतरनाक है कि उससे मृत्यु कारित होने की पूरी संभावना है या ऐसी शारीरिक क्षति होगी जिससे मृत्यु होने की संभावना है, और उसने अभी बताए गए दोनों कार्यों को बिना किसी बहाने के किया हो।

उदाहरण: भूरा अपने गांव के लालू से निजी दुश्मनी का बदला लेने की इच्छा से योजना बनाकर लालू पर एक धारदार चाकू से वार कर देता है, जिससे लालू की मृत्यु हो जाती है, क्योंकि इस मामले में भूरा के द्वारा मृत्यु कारित करने का इरादा मजबूत था, अपराध की पहले से ही योजना और जानकारी भी थी, अपराध की गंभीरता भी अधिक थी और लालू की मृत्यु होने की संभावना भी ज्यादा होने के कारण उसकी मृत्यु भी हो गयी, इसलिए यह मामला हत्या का कहलाएगा।

अपवाद 1: यदि अपराधी गंभीर और अचानक उकसावे के कारण आत्म-नियंत्रण खो बैठता है, तो वह उकसावा देने वाले व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है या गलती से या दुर्घटनावश किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, तो वह अपराधिक मानव वध हत्या नहीं मानी जाएगा, लेकिन उकसावा ऐसा नहीं होना चाहिए कि-

  • किसी व्यक्ति को मारने या नुकसान पहुंचाने के लिए अपराधी द्वारा किया गया बहाना या स्वेच्छा से उकसाया गया हो;
  • कानून के पालन में की गई किसी भी कार्यवाही द्वारा या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के वैध प्रयोग में की गई कार्रवाई द्वारा
  • प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई किसी भी कार्यवाही द्वारा

स्पष्टीकरण: उकसावा इतना गंभीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है। 

अपवाद 2: यदि अपराधी अपने शरीर या संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का सद्भावपूर्वक प्रयोग करते हुए, विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण करता है और बिना पूर्वचिंतन के तथा ऐसे बचाव के प्रयोजन के लिए आवश्यकता से अधिक नुकसान पहुंचाने के किसी इरादे के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कर देता है, जिसके विरुद्ध वह प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग कर रहा है, तो वह अपराधिक मानव वध हत्या नहीं मानी जाएगा 

अपवाद 3: यदि अपराधी, लोक सेवक होते हुए या लोक न्याय की उन्नति के लिए कार्य करने वाले लोक सेवक की सहायता करते हुए, विधि द्वारा उसे दी गई शक्तियों का अतिक्रमण करता है, तथा ऐसा कार्य करके मृत्यु कारित करता है जिसे वह सद्भावपूर्वक विधिसम्मत तथा लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक मानता है, तथा उस व्यक्ति के प्रति दुर्भावना नहीं रखता है, जिसकी मृत्यु कारित की गई है, तो वह अपराधिक मानव वध हत्या नहीं मानी जाएगा 

अपवाद 4: यदि मानव वध बिना किसी पूर्व विचार के अचानक झगड़े के बाद आवेश में आकर की गई लड़ाई में और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूर या असमान्य तरीके से कार्य किए बिना किया गया हो, तो वह अपराधिक मानव वध हत्या नहीं मानी जाएगा। 

स्पष्टीकरण: ऐसे मामलों में ये बात मायने नहीं रखती कि कौन सा पक्ष उकसाता है या पहला हमला करता है।  

अपवाद 5: अपराधिक मानव वध हत्या नहीं माना जाएगा, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु हुई है, 18 वर्ष से अधिक उम्र का है और सहमति से मृत्यु को प्राप्त हुआ है या उसने खुद मृत्यु का जोखिम उठाया है।

नोट 1: भारतीय न्याय संहिता की धारा 101, भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के समरूप है।

नोट 2: हत्या के मामलों में सजा के प्रावधान भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 में दिए गए है, जानने के लिए क्लिक करें- हत्या के लिए दंड (Section 103 BNS)

नोट 3: आपराधिक मानव वध की परिभाषा भारतीय न्याय संहिता की धारा 100 में दी गई है, जानने के लिए क्लिक करें- आपराधिक मानव वध (Section 100 BNS)

READ OTHER SECTIONS OF CHAPTER VI — OF OFFENCES AFFECTING THE HUMAN BODY

Section 101 of BNS Bare Act

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