इस लेख में आपको ‘संगठित अपराध’ की सभी उपधाराओं के बारे में जानकारी मिलेगी। इसके साथ ही आपको सजा, जुर्माना और यह अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय, जमानतीय है या गैर-जमानती तथा ऐसे अपराध की सुनवाई कहां होगी, इसकी पूरी जानकारी मिलेगी।
Section 111 BNS | BNS 111
111(1) BNS | BNS 111(1) | Organised Crime Definition
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(1) के अनुसार, अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि पर कब्जा, अनुबंध हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध, व्यक्तियों की तस्करी, ड्रग्स, हथियारों, अवैध माल या सेवाओं का दुर्व्यापार, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव दुर्व्यापार किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य द्वारा या ऐसे सिंडिकेट का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा कोई सतत् विधिविरुद्ध कार्य भौतिक लाभ या वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए हिंसा, हिंसा की धमकी, दवाब, उत्पीड़न या अन्य विधिविरुद्ध साधनों द्वारा किया गया हो, तो ऐसे कार्य संगठित अपराध कहलाएंगे।
स्पष्टीकरण: उपरोक्त धारा से सम्बंधित कुछ कठिन शब्दों की परिभाषाएं नीचे दी गयी हैं—
संगठित अपराध सिंडिकेट: दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह जो एक टोली के रूप में या तो अकेले या सामूहिक रूप से किसी सतत् विधि विरुद्ध कार्य में लिप्त हो।
सतत् विधिविरुद्ध कार्य: ऐसे अवैध कार्य जो संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हों, और जिनमें 3 वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास का प्रावधान हो, यदि किसी पर 10 वर्षों की अवधि के भीतर एक न्यायालय के समक्ष ऐसे एक से अधिक आरोप पत्र दाखिल किया जा चुके हो, और उस न्यायालय ने ऐसे अपराध का मुकदमा ग्रहण कर लिया हो और इसमें आर्थिक अपराध भी शामिल हों, तो ऐसे कार्य को सतत् विधिविरुद्ध कार्य कहेंगे।
आर्थिक अपराध: आर्थिक अपराध में आपराधिक विश्वासघात, जालसाजी मुद्रा नोटों, बैंक नोटों और सरकारी टिकटों की जलसाजी, हवाला लेनदेन, बड़े पैमाने पर मार्केटिंग धोखाधड़ी या कई व्यक्तियों को धोखा देने के लिए कोई योजना चलाना या किसी दूसरे तरीके से कोई कार्य करना शामिल है। इसके अलावा किसी भी रूप में मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसी बैंक या वित्तीय संस्था या किसी अन्य संस्था या संगठन को धोखा देने के उद्देश्य से किया गया कार्य भी आर्थिक अपराध कहलाएगा।
111(2) BNS | BNS 111(2)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(2) के अनुसार, जो कोई संगठित अपराध कारित करेगा—
(a) यदि ऐसे अपराध के परिणामस्वरुप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो अपराधी को मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹10 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा की लालू से दुश्मनी थी, भूरा ने एक हत्यारे गैंग से संपर्क किया जिसमें तीन सदस्य थे, भूरा ने लालू की हत्या करने के लिए उन्हें ₹50000 दिए, उस हत्यारे गैंग के तीन सदस्यों ने मिलकर लालू की हत्या कर दी, इस मामले में भूरा और उस हत्यारे गैंग के तीन सदस्यों को उपरोक्त उपधारा के अनुसार मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, और वे सभी जुर्माने के लिए भी दायी होंगे, जो ₹10 लाख से कम नहीं होगा।
(b) किसी अन्य मामले में अपराधी को 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा, लालू और कालू ने मिलकर लालसिंह के घर पर डकैती डाली, पकड़े जाने पर भूरा, लालू और कालू को उपरोक्त उपधारा के अनुसार 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
111(3) BNS | BNS 111(3)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(3) के अनुसार, जो कोई संगठित अपराध का दुष्प्रेरण, प्रयत्न, षड्यंत्र करता है या जानबूझकर संगठित अपराध को अंजाम देने में मदद करता है या किसी संगठित अपराध की तैयारी में शामिल होता है, तो उसे 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा, लालू और कालू तीनों मिलकर लालसिंह की भूमि पर अवैध कब्जा करना चाहते थे, इसमें लालसिंह के पड़ोसी भानू ने दुश्मनी के चलते भूरा, लालू और कालू की उस भूमि पर अवैध कब्जा प्राप्त करने में मदद की, लालसिंह के द्वारा न्यायालय में उसका भूमि पर वैध कब्जा साबित किए जाने के बाद भूरा, लालू, कालू और भानू को उपरोक्त उपाधारा के अनुसार 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
111(4) BNS | BNS 111(4)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(4) के अनुसार, जो कोई संगठित अपराध सिंडिकेट का सदस्य है, उसे 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा एक ऐसे गैंग का सदस्य है, जो अवैध रूप से जबरन वसूली किया करते हैं, ऐसा साबित होने के बाद भूरा को उपरोक्त उपधारा के अनुसार 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
111(5) BNS | BNS 111(5)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(5) के अनुसार, जो कोई किसी व्यक्ति को जिसने संगठित अपराध कार्य किया है, उसे जानबूझकर शरण देगा या छिपाएगा, तो उसे 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: लालू एक हत्यारे गैंग का सदस्य है, जिस पर हत्या का मुकदमा भी चल रहा है, वह किसी की हत्या करके कालू के घर पर शरण लेता है, जिसकी जानकारी कालू को पहले से थी, ऐसे मामले में कालू को उपरोक्त उपधारा के अनुसार 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹5 लाख से कम नहीं होगा।
नोट: परंतु यह उपाधारा उस दशा में लागू नहीं होगी, जिसमें शरण देना या छिपाना अपराधी के पति-पत्नी द्वारा किया जाता है।
111(6) BNS | BNS 111(6)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(6) के अनुसार, जो कोई, किसी संगठित अपराध के किए जाने से प्राप्त या संगठित अपराध की आय से प्राप्त या संगठित अपराध के माध्यम से अर्जित किसी संपत्ति पर कब्जा रखता है, तो उसे 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹2 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा, लालू और कालू तीनों ने मिलकर एक कार चुराई, और उसे लालसिंह के फार्म पर छिपा दिया, लालसिंह को इसकी पूर्ण जानकारी होने के बावजूद भी उसने कार को अपने फार्म पर छिपाने की अनुमति दी, ऐसे मामले में लालसिंह को उपरोक्त उपधारा के अनुसार 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक दंडित किया जा सकेगा, और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹2 लाख से कम नहीं होगा।
111(7) BNS | BNS 111(7)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(7) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के पास संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य की ओर से चल या अचल संपत्ति है या कभी भी रही है, जिसका वह सही-सही हिसाब नहीं दे सकता है, उसे 3 वर्ष से 10 वर्ष तक के कारावास से दंडित किया जा सकेगा और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹1 लाख से कम नहीं होगा।
उदाहरण: भूरा के ऊपर लालू ने मुकदमा लगाया कि लालू के मकान को एक अपराधी गिरोह ने भूरा को सस्ते में बेच दिया, जब भूरा से न्यायालय में मकान के कागजात मांगे गए तो उसने फर्जी कागजात दिखाए, इस मामले में भूरा को उपरोक्त उपधारा के अनुसार 10 वर्ष तक के कारावास से दंडित किया जा सकेगा और वह जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो ₹1 लाख से कम नहीं होगा।
नोट: भारतीय न्याय संहिता की धारा 111 एक नई धारा है, ये धारा भारतीय दंड संहिता की किसी धारा के समरूप नहीं है।
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Section 111 of BNS Bare Act
FAQs from BNS Section 111
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What is 111 BNS punishment?
भारतीय न्याय संहिता की
— धारा 111(2)(a) के अंतर्गत यदि उसके अपराध से किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसे मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता है,
— धारा 111(2)(b) के तहत अपराधी को 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक,
— धारा 111(3) के तहत 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक,
— धारा 111(4) के तहत 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक,
— धारा 111(5) के तहत 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक,
— धारा 111(6) के तहत 3 वर्ष से आजीवन कारावास तक,
— धारा 111(7) के तहत 3 वर्ष से 10 वर्ष तक के कारावास से,
दंडित किया जा सकता है। -
What is the fine under section 111 of the Bharatiya Nyaya Sanhita?
भारतीय न्याय संहिता की
— धारा 111(2)(a) के तहत अपराध करने पर ₹10 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(2)(b) के तहत अपराध करने पर ₹5 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(3) के तहत अपराध करने पर ₹5 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(4) के तहत अपराध करने पर ₹5 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(5) के तहत अपराध करने पर ₹5 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(6) के तहत अपराध करने पर ₹2 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
— धारा 111(7) के तहत अपराध करने पर ₹1 लाख या उससे अधिक जुर्माने से,
दंडित किया जा सकता है। -
Is 111 BNS a cognizable or non-cognizable offence?
बीएनएस की धारा 111 की सभी उपधाराओं के अंतर्गत किए गए अपराध ‘संज्ञेय’ हैं।
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Is 111 BNS bailable or not?
बीएनएस की धारा 111 की सभी उपधाराओं के अंतर्गत किए गए अपराध ‘गैर-जमानतीय’ हैं।
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111 BNS offence is triable by which Court?
बीएनएस की धारा 111 की सभी उपधाराओं के अंतर्गत किए गए अपराधों की सुनवाई ‘सेशन कोर्ट’ करता है।
Difficult words of BNS Section 111
शब्द | सरल अर्थ |
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संज्ञेय अपराध | ऐसे अपराध जिनमें कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकता है। |
असंज्ञेय अपराध | ऐसे अपराध जिनमें कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकता। |
जमानतीय अपराध | ऐसे अपराध जिनमें पुलिस थाने से सीधे जमानत मिल जाती है, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की प्रथम अनुसूची में सभी जमानतीय अपराध दिए गए हैं। |
गैर-जमानतीय अपराध | ऐसे अपराध जिनमें पुलिस थाने से सीधे जमानत नहीं मिलती, बल्कि न्यायलय में मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश इसका फैंसला करता है कि जमानत कब मिलेगी, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की प्रथम अनुसूची में सभी गैर जमानतीय अपराध दिए गए हैं। |
स्वेच्छा से | खुद की इच्छा से/जानबूझकर |
अनुबंध हत्या करना | किसी व्यक्ति के साथ कोई समझौता करके शर्त के अनुसार हत्या करना। |
उत्पीड़न | कष्ट देना |
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