Section 239 BNS: सूचना देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की सूचना देने में जानबूझकर चूक करना

Section 239 BNS | BNS 239

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी के द्वारा कोई अपराध किया गया है तथा वह उस अपराध के बारे में कोई सूचना देने के लिए कानूनी रूप से आबद्ध है, फिर भी ऐसी सूचना को देने में जानबूझकर चूक करेगा, तो उसे 6 महीने तक का कारावास या ₹5000 तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

उदाहरण: लाल सिंह एक डॉक्टर है जिसके पास भूरा नाम का एक व्यक्ति इलाज के लिए आता है, जिसके पेट में चाकू से एक बड़ा जख्म लगा हुआ था, लाल सिंह ने पुलिस को इस बारे में सूचना दिए बिना भूरा का इलाज करके उसे घर वापस भेज दिया, ऐसे मामले में लाल सिंह को उपरोक्त धारा के अनुसार 6 मास तक का कारावास या 5000 रूपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

नोट: भारतीय न्याय संहिता की धारा 239, कुछ परिवर्तनों के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 200 के समरूप है।

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Section 239 of BNS Bare Act

Section 239 of The Bharatiya Nyaya Sanhita Bare Act

FAQs from BNS Section 239

  1. What is 239 BNS punishment?

    बीएनएस की धारा 239 के तहत अपराधी को 6 महीने तक का कारावास से दंडित किया जा सकता है।

  2. What is the fine under section 239 of the Bharatiya Nyaya Sanhita?

    बीएनएस की धारा 239 के तहत अपराध करने पर 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

  3. Is 239 BNS a cognizable or non-cognizable offence?

    बीएनएस की धारा 239 के अंतर्गत किए गए अपराध ‘असंज्ञेय’ हैं।

  4. Is 239 BNS bailable or not?

    बीएनएस की धारा 239 के अंतर्गत किए गए अपराध ‘जमानतीय’ हैं।

  5. 239 BNS offence is triable by which Court?

    बीएनएस की धारा 239 के अंतर्गत किए गए अपराध की सुनवाई ‘कोई मजिस्ट्रेट’ कर सकता है।

Difficult words of BNS Section 239

शब्दसरल अर्थ
संज्ञेय अपराध ऐसे अपराध जिनमें कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकता है।
​असंज्ञेय अपराधऐसे अपराध जिनमें कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकता।
जमानतीय अपराधऐसे अपराध जिनमें पुलिस थाने से सीधे जमानत मिल जाती है, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की प्रथम अनुसूची में सभी जमानतीय अपराध दिए गए हैं।
गैर-जमानतीय अपराधऐसे अपराध जिनमें पुलिस थाने से सीधे जमानत नहीं मिलती, बल्कि न्यायलय में मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश इसका फैंसला करता है कि जमानत कब मिलेगी, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की प्रथम अनुसूची में सभी गैर जमानतीय अपराध दिए गए हैं।
आबद्ध बाध्य

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